Tuesday, November 13, 2007

तुम दाता हो दयालु - भजन

ॐ : तुम दाता हो दयालु - भजन : ॐ

तुमने ही दया करके बिगड़े काज बनाये
तुम दाता हो दयालु सबके ही काम आए

मैं जब भी कभी भटका , तेरी राह से गुरुवर
मेरी बांह खींच लाये , मुझे छोडा अपने दर पर
इतनी दया की फिर भी , तुमको समझ ना पाये
तुमने ही दया करके बिगड़े काज बनाये

कुछ मांगने की चाहत , मेरे दिल में अब नहीं है
जो कुछ किया जो करते , सरकार सब सही है
जितना मिला जो तुमसे , वो ही संभल ना पाये
तुमने ही दया करके बिगड़े काज बनाये

फिर भी जो देना चाहो , सरकार प्यार देना
चरणों की अपने भक्ति , दिन रात मुझको देना
भूलूं तुम्हें कभी ना , चाहे जन्म सौ - सौ आयें
तुमने ही दया करके बिगड़े काज बनाये

"शुभ" दास की है विनती , छूटे ना दर तुम्हारा
चरणों का आसरा दो , बन जाऊं तुमको प्यारा
छूटे ना तेरा दामन , चाहे कोई इसे छुड़ाये

तुमने ही दया करके बिगड़े काज बनाये



रचित द्वारा : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"
९९९०३४८६६४

Sunday, November 11, 2007

साप्ताहिक सत्संग [ ११ नवम्बर २००७ ]

**** पूज्य श्री का साप्ताहिक विडियो सत्संग ****
[प्रत्येक रविवार आश्रम प्रांगण में ]
दिनांक : ११ नवम्बर २००७ , दिवस : रविवार

कार्यक्रम रुपरेखा :>> [११ नवम्बर २००७ ]
१) गुरू वंदना
२) वीडियो सत्संग : पूर्णिमा सत्संग ,
अजमेरी गेट , नयी दिल्ली , ३० मई २००७

३) भजन संकीर्तन
४) आगामी कार्यक्रम सूचनाएँ
५) आरती
६) पादुका पूजन
7) प्रसाद वितरण

~~~~ समिति सम्पर्क सूत्र ~~~~
एस ० टी ० डी ० कोड : ०१२३२
फ़ोन : २४५५८२, २२९७१७, २२४६६८, २४४६४०, २४५२७०

~~~~ आश्रम ~~~~
संत श्री आसाराम जी बापू आश्रम “बापू धाम”,
निकट पुलिस फायर स्टेशन,
निवाडी रोड़ , मोदीनगर
जिला : गाजियाबाद( उत्तर प्रदेश ) २०१ २०४

आगामी कार्यक्रम सूचना :
मासिक समिति मीटिंग आगामी रविवार , नियमित सत्संग के उपरांत ।

दीपावली कार्यक्रम वर्ष २००७

हरि ॐ

दीपावली (दीपों का उत्सव)
मोदीनगर आश्रम पर खूब धूम धाम से मनाई गई । साधकों ने भजन संकीर्तन के साथ पूरे आश्रम को दीयों की श्रंखला से सजा दिया । उत्सव की शुरुआत ३.०० बजे दोपहर को श्री गुरु वंदना , श्री गणेश वंदना से हुई । सभी भक्तों ने श्री आसरामायण जी के पाठ का लाभ भी लिया . श्री योग वेदांत सेवा समिति , मोदीनगर द्वारा स्थानीय दरिद्र नारायणो के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में जाकर मिठाई बाँटी एवं दीपक जलाये । कुछ साधक आश्रम के कार्यक्रम को आगे बढाते रहे और कुछ साधकों ने वितरण कार्यक्रम में अपना सहयोग दिया । आश्रम (समिति) द्वारा लगभग १२५ किलोग्राम मिठाई का वितरण किया गया । आश्रम पर पधारे भक्तों ने वडदादा की परिक्रमा करके ध्यान भजन किया । पूज्य गुरुदेव की अहेतु की कृपा से ही ये आयोजन भली प्रकार संपन्न हुआ ।

सबका मंगल सबका भला हो , गुरु चाहना ऐसी है ।
इसीलिए तो आए धरा पर सदगुरु आसाराम जी है ॥

Saturday, November 10, 2007

साप्ताहिक सत्संग [४ नवम्बर २००७ ]

**** पूज्य श्री का साप्ताहिक विडियो सत्संग ****
[प्रत्येक रविवार आश्रम प्रांगण में ]
दिनांक : ४ नवम्बर २००७ , दिवस : रविवार

कार्यक्रम रुपरेखा :>> [४ नवम्बर २००७ ]

पूज्य गुरुदेव के पावन सानिध्य में नॉएडा (यू . पी) में एक विशाल शोभा यात्रा का आयोजन किया गया । अतः समिति द्वारा शोभा यात्रा में सम्मिलित होने की व्यवस्था भी की गयी । किन्तु आश्रम पर नियमित वीडियो सत्संग कार्यक्रम के स्थान पर भजन संकीर्तन का ही आयोजन किया गया। अधिकतर साधक वृंद शोभा यात्रा में सम्मिलित होने के नॉएडा पहुंचे ।

१) वंदना
२) भजन संकीर्तन
३) आरती
४) प्रसाद वितरण

~~~~ समिति सम्पर्क सूत्र ~~~~
एस ० टी ० डी ० कोड : ०१२३२
फ़ोन : २४५५८२, २२९७१७, २२४६६८, २४४६४०, २४५२७०

~~~~ आश्रम ~~~~
संत श्री आसाराम जी बापू आश्रम “बापू धाम”,
निकट पुलिस फायर स्टेशन,
निवाडी रोड़ , मोदीनगर
जिला : गाजियाबाद( उत्तर प्रदेश ) २०१ २०४

आगामी कार्यक्रम सूचना :
दीपावली के पावन पर्व पर स्थानीय आश्रम पर भजन संकीर्तन कार्यक्रम एवं दरिद्र नारायणो के क्षेत्रों में जाकर प्रसाद वितरण एवं दीपक जलाने की व्यवस्था की जायेगी ।
दिनांक : ९ नवम्बर २००७ ( शुक्रवार )
समय : ३.०० दोपहर से ५.०० बजे तक

Wednesday, November 7, 2007

श्री आसारामायण

श्री आसारामायण

गुरु चरण रज शीश धरी , हृदय रूप विचार ।
श्री आसारामायण कहों , वेदान्त को सार ॥
धर्म कामार्थ मोक्ष दे , रोग शोक संहार ।
भजे जो भक्ति भाव से , शीघ्र हो बेडा पार ॥

भारत सिंधु नदी बखानी , नवाब जिले में गाँव बेराणी
रहता एक सेठ गुनखानी , नाम थाउमल सिरुमलानी
आज्ञा में रहती मेंह्गीबा , पति परायण नाम मंगीबा
चैत वद छः उन्नीस अठानवे , आसुमल अवतरित आँगने
माँ मन में उमडा सुख सागर , द्वार पे आया एक सौदागर
लाया एक अति सुन्दर झूला , देख पिता मन हर्ष से फूला
सभी चकित ईश्वर की माया , उचित समय पर कैसे आया
ईश्वर की यह लीला भारी , बालक है कोई चमत्कारी

संत सेवा और श्रुति श्रवण , मात पिता उपकारी ।
धर्म पुरुष जन्मा कोई , पुण्यों का फल भारी ॥

सूरत थी बालक की सलोनी, आते ही कर दी अनहोनी
समाज में थी मान्यता जैसी , प्रचलित एक कहावत ऐसी
तीन बहन के बाद जो , आता पुत्र वह त्रेखन कहलाता
होता अशुभ अमंगल कारी , दरिद्रता लाता है भारी
विपरीत किन्तु दिया दिखाई , घर में जैसे लक्ष्मी आई
तिरलोकी का आसन डोला , कुबेर ने भण्डार ही खोला
मान प्रतिष्ठा और बढाई , सब के मन सुख शांति छाई

तेजोमय बालक बढा , आनंद बढा अपार ।
शील शांति का आत्मधन , करने लगा विस्तार ॥

एक दिना थाउमल द्वारे , कुलगुरु परशुराम पधारे
ज्यूँ ही वे बालक को निहारे , अनायास ही सहसा पुकारे
यह नहीं बालक साधारण , दैवी लक्षण तेज हैं कारण
नेत्रों में है सात्विक लक्षण , इसके कार्य बडे विलक्षण
यह तो महान संत बनेगा , लोगों का उद्धार करेगा
सुनी गुरु की भविष्य वाणी , गद गद हो गए सिरुमलानी
माता ने भी माथा चूमा , हर कोई ले करके घूमा

ज्ञानी वैरागी पूर्व का , तेरे घर में आये ।
जन्म लिया है योगी ने , पुत्र तेरा कहलाये ॥
पावन तेरा कुल हुआ , जननी कोख कृतार्थ ।
नाम अमर तेरा हुआ , पूर्ण चार पुरुषार्थ ॥

सैतालिस में देश विभाजन , पाक में छोडा भू पशु औ धन
भारत अमदाबाद में आये , मणिनगर में शिक्षा पाए
बड़ी विलक्षण स्मरण शक्ति , असुमल की आशु युक्ति
तीव्र बुद्धि एकाग्र नम्रता , त्वरित कार्य और सहनशीलता
आसुमल प्रसन्न मुख रहते , शिक्षक हसमुख भाई कहते
पिस्ता बादाम काजू अखरोटा , भरे जेब खाते भर पेटा
दे दे मक्खन मिश्री कूजा , माँ ने सिखाया ध्यान और पूजा
ध्यान का स्वाद लगा तब ऐसे , रहे न मछली जल बिन जैसे
हुए ब्रह्मविद्या से युक्त वे , वही है विद्या या विमुक्तये
बहुत रात तक पैर दबाते , भरे कंठ पितु आशीष पाते

पुत्र तुम्हारा जगत में , सदा रहेगा नाम ।
लोगों के तुमसे सदा , पूरन होंगे काम ॥

सिर से हटी पिता की छाया , तब माया ने जाल फैलाया
बडे भाई का हुआ दुःसाशन , व्यर्थ हुए माँ के आश्वासन
छूटा वैभव स्कूली शिक्षा , शुरू हो गई अग्नि परीक्षा
गए सिद्धपुर नौकरी करने , कृष्ण के आगे बहाए झरने
सेवक सखा भाव से भीजे , गोविन्द माधव तब रीझे
एक दिना एक माई आई , बोली हे भगवन सुखदायी
पड़े पुत्र दुख मुझे झेलने , खून केस दो बेटे जेल में
बोले आसु सुख पावेंगे , निर्दोष छुट जल्दी आवेंगे
बेटे घर आये माँ भागी , आसुमल के पावों लागी

आसुमल का पुष्ट हुआ , आलोकिक प्रभाव ।
वाक सिद्धि की शक्ति का , हो गया प्रादुर्भाव ॥

बरस सिद्धपुर तीन बिताये , लौट अहमदाबाद में आये
करने लगी लक्ष्मी नर्तन , किया भाई का दिल परिवर्तन
दरिद्रता को दूर कर दिया , घर वैभव भरपूर कर दिया
सिनेमा उन्हें कभी न भाये , बलात ले गए रोते आये
जिस माँ ने था ध्यान सिखाया , उसको ही अब रोना आया
माँ करना चाहती थी शादी , आसुमल का मन वैरागी
फिर भी सबने शक्ति लगाई , जबरन कर दी उनकी सगाई
शादी को जब हुआ उनका मन , आसुमल कर गए पलायन

पंडित कहा गुरु समर्थ को , रामदास सावधान ।
शादी फेरे फिरते हुए , भागे छुडा कर जान ॥

करत खोज में निकल गया दम , मिले भरुच में अशोक आश्रम
कठिनाई से मिला रास्ता , प्रतिष्ठा का दिया वास्ता
घर में लाये आजमाये गुर , बारात ले पहुंचे आदिपुर
विवाह हुआ पर मन द्रढाया , भगत ने पत्नी को समझाया
अपना व्यवहार होगा ऐसे , जल में कमल रहता है जैसे
सांसारिक व्यवहार तब होगा , जब मुझे साक्षात्कार होगा
साथ रहे ज्यूँ आत्मा काया , साथ रहे वैरागी माया

अनश्वर हूँ मैं जानता , सत-चित हूँ आनंद ।
स्थिति में जीने लगूँ , होवे परमानन्द ॥

मूल ग्रंथ अध्ययन के हेतु , संस्कृत भाषा है एक सेतु
संस्कृत की शिक्षा पायी , गति और साधना बढाई
एक श्ळोक ह्रदय में पैठा , वैराग्य सोया उठ बैठा
आशा छोड़ नैराश्यवलम्बित , उनकी शिक्षा पूर्ण अनुष्ठित
लक्ष्मी देवी को समझाया , ईश प्राप्ति ध्येय बताया
छोड़ के घर मैं अब जाऊँगा , लक्ष्य प्राप्त कर लौट आऊँगा
केदारनाथ के दर्शन पाए , लक्षाधिपति आशीष पाए
पुनि पूजा पुनः संकल्पाये , ईश प्राप्ति आशीष पाए
आये कृष्ण लीला स्थली में , वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में
कृष्ण ने मन में ऐसा ढाला , वे जा पहुंचे नैनिताला
वहाँ थे श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठित , स्वामी लीलाशाह प्रतिष्टित
भीतर तरल थे बाहर कठोरा , निर्विकल्प ज्यूँ कागज़ कोरा
पूर्ण स्वतंत्र परम उपकारी , ब्रह्मस्थित आत्मसाक्षात्कारी

ईश-कृपा बिन गुरु नहीं , गुरु बिना नहीं ज्ञान ।
ज्ञान बिना आत्मा नहीं , गावहि वेद-पुराण ॥

जानने को साधक की कोटी , सत्तर दिन तक हुई कसौटी
कंचन को अग्नि में तपाया , गुरु ने आसुमल बुलवाया
कहा गृहस्थ हो कर्म करना , ध्यान भजन घर पर ही करना
आज्ञा मानी घर पर आये , पक्ष में मोटी-कोरल धाए
नर्मदा तट पर ध्यान लगाए , लालजी महाराज आकर्षाये
सप्रेम शील स्वामी पँह धाए , दत्त-कुटीर में साग्रह लाये
उमडा प्रभु प्रेम का चस्का , अनुष्ठान चालीस दिवस का
मरे छः शत्रु स्थिति पायी , ब्रह्मनिष्ठ्ता सहज समाई
शुभाशुभ सम रोना-गाना , ग्रीष्म ठंड मान और अपमाना
तृप्त हो खाना भूख अरु प्यास , महल और कुटिया आस निरास
भक्ति योग ज्ञान अभ्यासी , हुए समान मगहर और कासी

भाव ही कारण ईश है , न स्वर्ण काठ पाषण ।
सत-चित-आनंद रूप है , व्यापक है भगवान ॥
ब्रह्मेशान जनार्दन , सारद शेष गणेश ।
निराकार साकार है , है सर्वत्र भवेश ॥

हुए आसुमल ब्रह्म-अभ्यासी , जन्म अनेको लागे बासी
दूर हो गयी आधि व्याधि , सिद्ध हो गयी सहज समाधि
इक रात नदी तट मन आकर्षा , आई जोर से आंधी वर्षा
बंद मकान बरामदा खाली , बैठे वहीं समाधि लगा ली
देखा किसी ने सोचा डाकू , लाये लाठी भाला चाकू
दौडे चीखे शोर मच गया , टूटी समाधि ध्यान खिंच गया
साधक उठा थे बिखरे केशा , राग द्वेष ना किंचित लेशा
सरल लोगों ने साधू माना , हत्यारों ने काल ही जाना
भैरव देख दुष्ट घबराए , पहलवान ज्यूँ मल्ल ही पाए
कामी जनों ने आशिक माना , साधुजन कीन्हें परनामा

एक दृष्टि देखे सभी , चले शांत गंभीर ।
सशस्त्रों की भीड़ को , सहज गए वे चीर ॥

माता आई धर्म की सेवी , साथ में पत्नी लक्ष्मी देवी
दोनों फूट-फूट के रोई , रुदन देख करुना भी रोई
संत लालजी हृदय पसीजा , हर दर्शक आंसू में भीजा
कहा सभी ने आप जइयो , आसुमल बोले की भाइयों
चालीस दिवस हुआ नही पूरा , अनुष्ठान है मेरा अधूरा
आसुमल ने छोडी तितिक्षा , माँ पत्नी ने की प्रतीक्षा
जिस दिन गाँव से हुई विदाई , जार जार रोए लोग लुगाई
अहमदाबाद को हुए रवाना , मिया-गाँव से किया पयाना
मुम्बई गए गुरु की चाह , मिले वहीं पे लीलाशाह
परम पिता ने पुत्र को देखा , सूर्य ने घट जल में पेखा
घटक तोड़ जल जल में मिलाया , जल प्रकाश आकाश में छाया
निज स्वरूप का ज्ञान द्रढाया , ढाई दिवस होश न आया

आसोज सुद दो दिवस , संवत बीस इक्कीस ।
मध्यान्ह ढाई बजे , मिला ईश से ईश ॥
देह सभी मिथ्या हुई , जगत हुआ निस्सार ।
हुआ आत्मा से तभी , अपना साक्षात्कार ॥

परम स्वतंत्र पुरुष दर्शाया , जीव गया और शिव को पाया
जान लिया हूँ शांत निरंजन , लागू मुझे न कोई बन्धन
यह जगत सारा है नश्वर , मैं ही शाश्वत एक अनश्वर
दीद है दो पर दृष्टि एक है , लघु गुरु में वही एक है
सर्वत्र एक किसे बतलाये , सर्व व्याप्त कहाँ आये जाये
अनंत शक्तिवाला अविनाशी , रिद्धि सिद्धि उसकी दासी
सारा ही ब्रह्माण्ड पसारा , चले उसकी इच्छा अनुसारा
यदि वह संकल्प चलाये , मुर्दा भी जीवित हो जाये

ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर , कार्य रहे न शेष ।
मोह कभी न ठग सके , इच्छा नहीं लवलेश ॥
पूर्ण गुरु कृपा मिली , पूर्ण गुरु का ज्ञान ।
आसुमल से हो गए , साँई आसाराम ॥

जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति चेते , ब्रह्मानंद का आनंद लेते
खाते पीते मौन या कहते , ब्रह्मानंद मस्ती में रहते
रहो गृहस्थ गुरु का आदेश , गृहस्थ साधु करो उपदेश
किये गुरु ने वारे न्यारे , गुजरात डीसा गाँव पधारे
मृत गाय दिया जीवन दाना , तब से लोगों ने पहचाना
द्वार पे कहते नारायण हरि , लेने जाते कभी मधुकरी
तब से वे सत्संग सुनाते , सभी आरती शांति पाते
जो आया उद्धार कर दिया , भक्त का बेडा पार कर दिया
कितने मरणासन्न जिलाए , व्यसन मांस और मद्य छुडाये

एक दिन मन उकता गया , किया डीसा से कूच ।
आई मौज फकीर की , दिया झोपड़ा फूँक ॥

वे नारेश्वर धाम पधारे , जा पहुंचे नर्मदा किनारे
मीलों पीछे छोडा मन्दर , गए घोर जंगल के अन्दर
घने वृक्ष तले पत्थर पर , बैठे ध्यान निरंजन का धर
रात गयी प्रभात हो आई , बाल रवि ने सूरत दिखाई
प्रातः पक्षी कोयल कूकंता , छूटा ध्यान उठे तब संता
प्रातर्विधि निवृत हो आये , तब आभास क्षुधा का पाए
सोचा मैं न कहीं जाऊँगा , यहीं बैठ कर अब खाऊँगा
जिसको गरज होगी आएगा , सृष्टि कर्ता खुद लाएगा
ज्यूँ ही मन विचार वे लाये , त्यूँ ही दो किसान वहाँ आये
दोनों सिर पर बांधे साफा , खाद्य पेय लिए दोनों हाथा
बोले जीवन सफल है आज , अर्घ्य स्वीकारो महाराज
बोले संत और पै जाओ , जो है तुम्हारा उसे खिलाओ
बोले किसान आपको देखा , स्वप्न में मार्ग रात को देखा
हमारा न कोई संत है दूजा , आओ गाँव करें तुम्हरी पूजा
आसाराम तब मन में धारे , निराकार आधार हमारे
पिया दूध थोडा फल खाया , नदी किनारे जोगी धाया

गांधीनगर गुजरात में , है मोटेरा ग्राम ।
ब्रह्मनिष्ठ श्री संत का , यहीं है पावन धाम ॥
आत्मानंद में मस्त है , करे वेदान्ती खेल ।
भक्ति योग और ज्ञान का , सदगुरु करते मेल ॥
साधिकाओं का अलग , आश्रम नारी उत्थान ।
नारी शक्ति जागृत सदा , जिसका नहीं बयान ॥

बालक वृद्ध और नर नारी , सभी प्रेरणा पाए भारी
एक बार जो दर्शन पाए , शांति का अनुभव हो जाये
नित्य विविध प्रयोग कराये , नादानुसंधान बताये
नाभि से वे ओम कहलायें , हृदय से वे राम कहलायें
सामान्य ध्यान जो लगाये , उन्हें वे गहरे में ले जायें
सबको निर्भय योग सिखाएं , सबका आत्मोत्थान करायें
हजारों के रोग मिटाए , और लाखों के शोक छुडाये
अमृतमय प्रसाद जब देते , भक्त का रोग शोक हर लेते
जिसने नाम का दान लिया है , गुरु अमृत का पान किया है
उनका योग क्षेम वे रखते , वे न तीन तापों से तपते
धर्म कामार्थ मोक्ष वे पाते , आपद रोगों से बच जाते
सभी शिष्य रक्षा पाते हैं , सूक्ष्म शरीर गुरु आते हैं
सचमुच गुरु हैं दीन दयाल , सहज ही कर देते हैं निहाल
वे चाहते सब झोली भर ले , निज आत्मा का दर्शन कर लें
एक सौ आठ जो पाठ करेंगे , उनके सारे काज सरेंगे
गंगाराम शील है दासा , होंगी पूर्ण सभी अभिलाषा

वराभयदाता सदगुरु , परम ही भक्त कृपाल ।
निश्चल प्रेम से जो भजे , साँई करे निहाल ॥
मन में नाम तेरा रहे , मुख पे रहे सुगीत ।
हमको इतना दीजिये , रहे चरण में प्रीत ॥